• Shri Bhagavad Gita Chapter 16 | श्री भगवद गीता अध्याय 16 | श्लोक 14

  • 2025/02/22
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Shri Bhagavad Gita Chapter 16 | श्री भगवद गीता अध्याय 16 | श्लोक 14

  • サマリー

  • श्लोक (Bhagavad Gita 16.14): असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी॥ यह श्लोक उन व्यक्तियों का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जो अहंकार और माया से अभिभूत रहते हैं। वे मानते हैं कि वे स्वयं ही सब कुछ हैं और अपने बल पर ही सफलता प्राप्त करते हैं।यह व्यक्ति यह सोचते हैं कि - "मेरे द्वारा शत्रु मारे गए हैं और अब कोई मुझे पराजित नहीं कर सकता।""अब मैं दूसरों को भी हरा दूँगा।""मैं स्वयं भगवान हूं, मैं ही भोगी हूँ, सिद्ध हूँ, बलवान हूँ, और सुखी हूँ।" यह श्लोक इस प्रकार के अहंकार और माया से प्रभावित व्यक्तियों के मनोवृत्तियों को प्रकट करता है। भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक में उन व्यक्तियों का वर्णन कर रहे हैं जो अहंकार और माया में बंधे रहते हैं। असौ मया हत: शत्रु: ऐसे व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्यों को अपनी स्वयं की उपलब्धि मानते हैं, और यह विश्वास करते हैं कि वे ही शत्रुओं को नष्ट कर सकते हैं। हनि:ये चापरानपि: इसके अलावा, वे यह भी मानते हैं कि वे अन्य शत्रुओं को भी नष्ट करने में सक्षम हैं, यानी उनका अहंकार इस हद तक बढ़ चुका होता है कि वे किसी भी समस्या को केवल अपनी शक्ति और सामर्थ्य से हल करने का दावा करते हैं। ईश्वर: अहम् अहम् भोगी सिद्धोऽहम् बलवान् सुखी: वे स्वयं को ईश्वर के समान समझते हैं, यह सोचते हुए कि उनके पास सभी भोग हैं, सिद्धि है, वे बलवान हैं, और सुखी हैं। यहाँ पर उनका अहंकार पूरी तरह से माया के जाल में बंधा हुआ होता है। भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक में अहंकार और माया में फंसे ऐसे व्यक्तियों के मनोवृत्तियों को प्रकट कर रहे हैं। ऐसे व्यक्तियों को समझाना मुश्किल होता है कि उनका यह अहंकार केवल विनाश की ओर ले जाएगा और वास्तविक सुख और सिद्धि केवल ईश्वर की कृपा और आध्यात्मिक साधना से प्राप्त हो सकती है। The Dangers of Ego & Self-Deception | Insights from Gita In Bhagavad Gita 16.14, Lord Krishna exposes the mindset of those who are consumed by ego and illusion: 🔹 They believe that they are the victors in life and that all their success comes from their own strength.🔹 They perceive themselves as invincible and think that no one can defeat them.🔹 They believe that they are equivalent to God, possessing all wealth, power, and happiness. However, this ego-driven mentality can lead to spiritual downfall. True fulfillment and happiness come not from ego but from recognizing the divine will and remaining humble. 🌟 Ego and IllusionSpiritual WisdomSelf-RealizationBhagavad Gita TeachingsHumility and SuccessDivine GraceReal Power #BhagavadGita #EgoAndIllusion #DivineWisdom #SelfRealization #SpiritualGrowth #HumilityInSuccess #TrueHappiness अर्थ:व्याख्या:Social Media Content (Facebook & Instagram):Title:Description:Tags:Hashtags:
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あらすじ・解説

श्लोक (Bhagavad Gita 16.14): असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी॥ यह श्लोक उन व्यक्तियों का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जो अहंकार और माया से अभिभूत रहते हैं। वे मानते हैं कि वे स्वयं ही सब कुछ हैं और अपने बल पर ही सफलता प्राप्त करते हैं।यह व्यक्ति यह सोचते हैं कि - "मेरे द्वारा शत्रु मारे गए हैं और अब कोई मुझे पराजित नहीं कर सकता।""अब मैं दूसरों को भी हरा दूँगा।""मैं स्वयं भगवान हूं, मैं ही भोगी हूँ, सिद्ध हूँ, बलवान हूँ, और सुखी हूँ।" यह श्लोक इस प्रकार के अहंकार और माया से प्रभावित व्यक्तियों के मनोवृत्तियों को प्रकट करता है। भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक में उन व्यक्तियों का वर्णन कर रहे हैं जो अहंकार और माया में बंधे रहते हैं। असौ मया हत: शत्रु: ऐसे व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्यों को अपनी स्वयं की उपलब्धि मानते हैं, और यह विश्वास करते हैं कि वे ही शत्रुओं को नष्ट कर सकते हैं। हनि:ये चापरानपि: इसके अलावा, वे यह भी मानते हैं कि वे अन्य शत्रुओं को भी नष्ट करने में सक्षम हैं, यानी उनका अहंकार इस हद तक बढ़ चुका होता है कि वे किसी भी समस्या को केवल अपनी शक्ति और सामर्थ्य से हल करने का दावा करते हैं। ईश्वर: अहम् अहम् भोगी सिद्धोऽहम् बलवान् सुखी: वे स्वयं को ईश्वर के समान समझते हैं, यह सोचते हुए कि उनके पास सभी भोग हैं, सिद्धि है, वे बलवान हैं, और सुखी हैं। यहाँ पर उनका अहंकार पूरी तरह से माया के जाल में बंधा हुआ होता है। भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक में अहंकार और माया में फंसे ऐसे व्यक्तियों के मनोवृत्तियों को प्रकट कर रहे हैं। ऐसे व्यक्तियों को समझाना मुश्किल होता है कि उनका यह अहंकार केवल विनाश की ओर ले जाएगा और वास्तविक सुख और सिद्धि केवल ईश्वर की कृपा और आध्यात्मिक साधना से प्राप्त हो सकती है। The Dangers of Ego & Self-Deception | Insights from Gita In Bhagavad Gita 16.14, Lord Krishna exposes the mindset of those who are consumed by ego and illusion: 🔹 They believe that they are the victors in life and that all their success comes from their own strength.🔹 They perceive themselves as invincible and think that no one can defeat them.🔹 They believe that they are equivalent to God, possessing all wealth, power, and happiness. However, this ego-driven mentality can lead to spiritual downfall. True fulfillment and happiness come not from ego but from recognizing the divine will and remaining humble. 🌟 Ego and IllusionSpiritual WisdomSelf-RealizationBhagavad Gita TeachingsHumility and SuccessDivine GraceReal Power #BhagavadGita #EgoAndIllusion #DivineWisdom #SelfRealization #SpiritualGrowth #HumilityInSuccess #TrueHappiness अर्थ:व्याख्या:Social Media Content (Facebook & Instagram):Title:Description:Tags:Hashtags:
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