
कर्मसंन्यास: कर्म और त्याग का मार्ग
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गीता-योग: अध्यात्मिक प्रबोधन की श्रवण यात्रा पॉडकास्ट शो की इस दसवीं कड़ी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मसंन्यासयोग अध्याय में प्रवेश करते हैं। यह कड़ी उन गहन सिद्धांतों को उजागर करती है जो कर्म और संन्यास के बीच संतुलन स्थापित करते हैं।
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि यद्यपि संन्यास (कर्म का त्याग) एक मार्ग है, परंतु कर्मयोग उससे श्रेष्ठ है। कर्मयोग हमें सिखाता है कि हम संसार में रहते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से कर सकते हैं। जैसे कमल-पत्र जल में रहते हुए भी जल से अछूता रहता है, वैसे ही कर्मयोगी संसार के बीच रहते हुए भी आसक्ति से मुक्त रहता है।
यह एपिसोड श्रोताओं को यह समझने में मदद करता है कि कर्म और त्याग का सही अर्थ क्या है, और कैसे आधुनिक जीवन – चाहे कार्यस्थल हो, परिवार हो या समाज – में कर्मयोग का अभ्यास हमें संतुलन, शांति और आत्म-शुद्धि की ओर ले जा सकता है।
✨ आइए सुनें और समझें कि श्रीकृष्ण का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर था।
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