
"श्री भगवद गीता | अनन्य भक्ति से ही भगवान की प्राप्ति | अध्याय 11 श्लोक 55 | Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 55"
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📜 Description:
"॥ श्री भगवद गीता - अध्याय 11, श्लोक 55 ॥"
🔹 संस्कृत श्लोक:
श्रीभगवानुवाच |
"मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्त: सङ्गवर्जित: |
निर्वैर: सर्वभूतेषु य: स मामेति पाण्डव || 55||"
🔹 श्लोक अर्थ:
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा:
"हे पाण्डव! जो व्यक्ति मेरे लिए कार्य करता है, मुझे ही परम मानता है, मेरा भक्त है, सब प्रकार के आसक्तियों से मुक्त है और सभी प्राणियों से द्वेष रहित है, वही मुझे प्राप्त करता है।"
🔹 व्याख्या:
- इस श्लोक में श्रीकृष्ण भक्ति योग के मार्ग को स्पष्ट करते हैं।
- भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति भगवान के लिए कार्य करता है, केवल उन्हें ही अपना परम उद्देश्य मानता है और निष्काम भक्ति करता है, वही उन्हें प्राप्त करता है।
- सच्चा भक्त किसी से द्वेष नहीं करता और सभी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता है।
- ऐसा व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर केवल ईश्वर की सेवा में तत्पर रहता है।
📌 महत्वपूर्ण संदेश:
✅ केवल भक्ति से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
✅ स्वार्थहीन प्रेम और सेवा ही भक्ति का मूल है।
✅ सभी प्राणियों से प्रेम और किसी से भी द्वेष न रखना भक्त के लिए अनिवार्य है।
✅ भगवान को पाने के लिए मन, वचन और कर्म से उन्हें समर्पित रहना आवश्यक है।
🌿 "सच्ची भक्ति में निहित प्रेम और समर्पण ही हमें भगवान के समीप ले जाता है!"
📿 "हरे कृष्ण हरे राम" का जप करें और अपने मन को शुद्ध करें।
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🌸 "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"