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サマリー
あらすじ・解説
श्लोक (Bhagavad Gita 16.10):
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विता:।
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रता:॥
दुष्पूर (अतृप्त) कामनाओं को आधार बनाकर, दंभ, मान (अहंकार), और मद (घमंड) से युक्त होकर, ऐसे लोग मोहवश असत् (ग़लत) विचारों को ग्रहण करते हैं और अशुद्ध व्रतों (अनैतिक गतिविधियों) में लिप्त हो जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण यहाँ आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के स्वभाव और उनके कार्यों का वर्णन कर रहे हैं:
दुष्पूर कामनाएँ:
- इन व्यक्तियों की इच्छाएँ अनियंत्रित और अतृप्त होती हैं।
- वे भौतिक सुखों को पाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, फिर भी संतोष प्राप्त नहीं करते।
दंभ, मान और मद:
- वे दिखावे, अहंकार, और अपने घमंड में रहते हैं।
- अपने गलत कार्यों पर भी गर्व महसूस करते हैं।
मोह और असत् विचार:
- मोह के कारण वे असत्य और अधर्म को स्वीकारते हैं।
- उनकी मान्यताएँ झूठी और अनैतिक होती हैं।
अशुद्ध व्रत:
- उनका जीवन अशुद्ध और अधर्ममय आचरण से भरा होता है।
- वे समाज और स्वयं के लिए हानिकारक कार्य करते हैं।
यह श्लोक हमें चेतावनी देता है कि ऐसी प्रवृत्तियाँ व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती हैं।
The Path of Destruction: A Warning from Bhagavad Gita 🚨🔥
In Bhagavad Gita 16.10, Lord Krishna describes the traits of those with a demonic mindset:
🔹 They are driven by insatiable desires.
🔹 Filled with pride, deceit, and arrogance.
🔹 They embrace false beliefs under the influence of delusion.
🔹 Their actions and lifestyle are impure and destructive.
Let's strive to rise above such tendencies and embrace purity, humility, and truthfulness. 🌟🙏
- Destructive Desires
- Gita Teachings
- Demonic Qualities
- Path to Purity
- Krishna's Guidance
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