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サマリー
あらすじ・解説
श्लोक (Bhagavad Gita 16.11):
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता:।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिता:॥
इन व्यक्तियों की चिंताएँ अनियंत्रित और अत्यधिक होती हैं। वे प्रलय (संसार के विनाश) के बारे में विचार करते हुए, अपनी सारी ऊर्जा केवल भोग की प्राप्ति में लगाते हैं। उनका विश्वास यही होता है कि यही उनका परम लक्ष्य है, और वे इसमें संलग्न रहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण यहाँ उन लोगों का वर्णन कर रहे हैं जो केवल भोग और संप्राप्ति में ही अपने जीवन का उद्देश्य मानते हैं।
चिन्ता अपरिमेय:
- उनका मन असीम चिंताओं से भरा होता है। वे हर समय भोग, संपत्ति, और भौतिक सुखों के लिए संघर्ष करते रहते हैं।
प्रलयान्त चिंताएँ:
- ये लोग अपने जीवन के अंत या विनाश की चिंता में डूबे रहते हैं, जबकि उनके पास कोई वास्तविक उद्देश्य नहीं होता।
कामोपभोग परमा:
- इनका सर्वोच्च लक्ष्य केवल भोग और कामनाओं की प्राप्ति होता है। वे इसी प्रयास में अपने जीवन का समय और ऊर्जा नष्ट कर देते हैं।
निश्चिता विश्वास:
- ये लोग अपने इस जीवन के उद्देश्य को लेकर पूरी तरह से अडिग और निश्चित होते हैं, यह मानते हुए कि यही सर्वोत्तम मार्ग है।
यह श्लोक हमें बताता है कि जब हम भौतिक सुखों और क्षणिक इच्छाओं के पीछे अंधे होकर जीवन जीते हैं, तो हम अपने जीवन के उद्देश्य से भटक जाते हैं और कभी भी सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति नहीं कर पाते।
The Illusion of Endless Desires | Gita Wisdom 💭🌿
In Bhagavad Gita 16.11, Lord Krishna explains how those lost in desires:
🔹 Live in constant, uncontrolled anxiety.
🔹 They believe that the pursuit of physical pleasure is the ultimate goal.
🔹 They are certain that this is their life's purpose, without realizing the futility of such a path.
Let's remember that true peace and fulfillment lie beyond fleeting desires. 🌟✨
- Desires and Peace
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- Path to Fulfillment
- Spiritual Awakening
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